1 सकारात्मक जीवन जीने के लिए नकारात्मक सोच का त्याग करना जरूरी है, इसीलिए हमेशा जीवन को देखने के अपने नजरिए में बदलाव करें।
2 जो समय बीत गया है उसे सोचकर अपना आज खराब ना करें और ना ही भविष्य को लेकर चिंता करें। हमेशा अपना जीवन वर्तमान में जिए।
3 हर सवेरे उठते ही यह सोचे कि आपके साथ आज सब कुछ अच्छा ही होगा। कभी भी यह ना सोचे कि आज का दिन खराब होगा। हमेशा सकारात्मक सोच के साथ अपने दिन की शुरुआत करें।
4 कभी भी अपनी तुलना दूसरों से ना करें। खुद की कमियों को स्वीकार करते हुए अपने जीवन में आगे बढ़े।
5 चुनौतियां आखिर किसके जीवन में नहीं आती। लेकिन वही अपने जीवन में सफल हो पाता है जिसे चुनौतियों का डटकर सामना करना आता है।
6 जीवन में कोई भी फैसला कितना ही मामूली क्यों ना हो हमेशा फैसला लेने से पहले कम से कम 100 बार सोच विचार जरूर करें। क्योंकि जल्दबाजी में लिए गए फैसले हमेशा गलत साबित हुए हैं।
7 दूसरा व्यक्ति किस चीज में कमजोर है या उसके अंदर क्या कमियां है यह ढूंढने से अच्छा है आप अपने खुद की कमियों को दूर करने का प्रयास करें।
8 आपका मस्तिष्क ही सकारात्मक या नकारात्मक सोच पैदा करता है इसीलिए इस मस्तिष्क के स्वास्थ्य को बनाए रखना जरूरी है। तभी आपके जीवन में सकारात्मक सोच का संचार हो सकेगा।
9 हमेशा अपने चेहरे पर मुस्कुराहट बनाए रखें क्योंकि लोगों को मायूस चेहरों की अपेक्षा मुस्कुराते चेहरे पसंद है तथा हमेशा खुश रहने की कोशिश करते रहे।
10 अंतर्मुखी बने रहने की अपेक्षा दूसरों से मेल मिलाप करें। अपने दोस्तों परिजनों से अपनी परेशानियों को बांटे।
पूरा आर्टिकल पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें - जीवन में कैसे लाएं सकारात्मकता
सकारात्मक जीवन जीने के 10 टिप्स :-
Bitcoin In Hindi: आज के डिजिटल युग में जिस रफ़्तार से इंटरनेट ने प्रगति की हैं वे वाकही काबलिय तारीफ हैं इंटरनेट के आने के बाद से हम सभी इंसानो का जीवन बहुत ही आरामदेहक हो गया हैं.
कंप्यूटर और इंटरनेट के माध्यम से ही आज हम सभी को एक से बढ़कर एक अनोखी चीज़े देखने को मिल रही हैं.What is Bitcoin In HindiArticle Sourced By www.snappymovie.com
TopPaanch एक हिंदी ब्लॉग है जो प्रभावी पोषण और फिटनेस टिप्स प्रदान करता है जो आपको एक संपूर्ण स्वस्थ जीवन शैली बनाए रखने में मदद कर सकता है।
हुमायूँ का जीवन परिचय (Humayun Ka Jeevan Parichay)भारतीय इतिहास में हुमायूं(Humayun) के नाम से मशहूर मुगल शासक का पूरा नाम नसीरूद्दीन मुहम्मद (Mirza Nasir ud-din Baig Muhammad Khan Humayun) था जिसने भारत में दो चरणों (1530-1540 और 1555-1556) में शासन किया यदपि हुमायूँ के पास साम्राज्य बहुत अधिक साल तक नही रहा फिर भी मुग़ल साम्राज्य की नींव में हुमायूँ का महत्वपूर्ण योगदान है। उसका साम्राज्य अफ़गानिस्तान, पाकिस्तान और उत्तर भारत के हिस्सों तक फैला था। हुमायूँ ने दिल्ली में एक दीनपनाह नामक नगर की स्थापना करवाई |आईन-ए -अकबरी के लेखक ‘अबुल फ़जल’ ने हुमायूँ के बारे में लिखा है :- पुस्तकें हुमायूँ की आध्यात्मिक साथी थी, यहाँ तक युद्ध के समय और यात्राओं में भी पुस्तकें सदैव हुमायूँ के साथ रहती थी व फुर्सत के क्षणों में हुमायूँ पुस्तकों के ज्ञान के सागर में डूब जाते थे | हुमायूं का प्राम्भिक जीवन (Early Life Of Humayun)प्रथम मुग़ल सम्राट बाबर के पुत्र नसीरुद्दीन हुमायूँ का जन्म 6 मार्च 1508 ई को काबुल में हुआ था। बाबर के 4 पुत्र व 1 पुत्री थे जिनमें हुमायूँ सबसे बड़े थे । बाबर ने हुमायूँ को 12 वर्ष की अल्पायु में ही बख़्शा का सूबेदार नियुक्त कर दिया था, जिसने बाबर के नेतृव्त में लगभग सभी अभियानों में हिस्सा लिया था। मुग़ल बादशाह बाबर ने अपना उत्तराधिकारी अपनी मृत्यु के पूर्व ही हुमायूँ को घोषित कर दिया था। मुग़ल वंश संस्थापक बाबर के बारे में पढ़ने के लिये यहॉँ दबाये click here
आप कहेंगे पहले गाँव आया फिर शहर, बिलकुल सही बात है। गाँव का निर्माण पहले हुआ है उसके बाद ही शहर अस्तित्व में आया। परन्तु यह दुखद है कि शहर के मुक़ाबले गाँव पिछड़ता चला गया। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी ने कहा था कि ‘‘भारत की आत्मा गाँव में बसती है’’। भारत गाँवों का देश है। उन्होंने अपने सपनों के भारत में गाँव के विकास (Rural Devlopment) को प्रमुखता दी थी। जैसा कि आप सभी भी जानते हैं, गाँव हमारी प्राचीन सभ्यता और संस्कृति के स्रोत एवं केंद्र रहे हैं। हमारे प्राचीन ग्रंथों, वेदों, पुराणों, स्मृतियों में भी ग्रामीण जीवन का विस्तार से उल्लेख है। गाँधीजी ने अपने सपनों के भारत में अपनी व्यापक दृष्टि का परिचय देते हुए तमाम स्थानीय आवश्यकता पूर्ति के लिए ग्रामीण विकास और पंचायती राज (Rural Development and Panchayati Raj) की महत्ता प्रदान की थी। उनका कहना था कि ग्राम स्वराज (Gram Swaraj) से ही भारत के गाँव आत्मनिर्भर बन सकेंगे।
हमारी पृथ्वी भीषण दबाव में है, इसका भविष्य बड़ा ही दयनीय है, जिसका कारण प्रत्यक्ष रूप से मानव समुदाय है। यदि 2050 तक विश्व की जनसंख्या 9.6 अरब तक पहुंचती है तो हमें हर व्यक्ति की मौजूदा जीवन शैली को सहारा देने के लिए 3 पृथ्वियों की आवश्यकता होगी। हालात ऐसे हैं कि हर वर्ष कुल आहार उत्पादन का लगभग एक-तिहाई अर्थात 10 खरब अमरीकी डॉलर मूल्य का 1.3 अरब टन आहार उपभोक्ताओं और दुकानदारों के कचरों के डिब्बों में सड़ता है अथवा परिवहन और फसल कटाई के खराब तरीकों के कारण बर्बाद हो जाता है। एक अरब से अधिक लोगों को ताजा पानी सुलभ नहीं हो पाता है। दुनिया में 3% से भी कम पानी ताजा तथा पीने लायक है और उसमें से 2.5% अंटार्कटिक, आर्कटिक और ग्लेशियर्स में जमा हुआ है। इस प्रकार सभी पारिस्थितिकी तथा ताजे पानी की जरूरतों के लिए हमें सिर्फ 0.5% का ही सहारा है। इसके साथ ही कारखानों के उड़ते धुएँ, लगातार कटते पेड़, नदियों और महासागरों का दूषित होता जल, रोजमर्रा की जिंदगी में उपयोग किया जाने वाला प्लास्टिक, रोज का बर्बाद होता अनाज और ऐसे ही कई विषय प्रकृति को सता रहे हैं जो बेहद गंभीर हैं। संवहनीय उपभोग और उत्पादन का आशय संसाधनों और ऊर्जा के कुशल प्रयोग को प्रोत्साहन देना, टिकाऊ बुनियादी सुविधाएं प्रदान करना, सबके लिए बुनियादी सेवाएं, प्रदूषण रहित और उत्कृष्ट नौकरियां तथा अधिक गुणवत्तापूर्ण जीवन की सुलभता प्रदान करना है। इसके फलस्वरूप विकास योजनाओं को साकार करने में सहायता मिलती है, भविष्य की आर्थिक, पर्यावरणीय और सामाजिक लागत कम होती है, आर्थिक स्पर्धा क्षमता मजबूत होती है और गरीबी में कमी आती है। सतत् विकास तभी हासिल किया जा सकता है, जब हम न सिर्फ अपनी अर्थव्यवस्थाओं में वृद्धि करें, बल्कि उस प्रक्रिया में बर्बादी को भी कम से कम करें। राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति और राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा निधि सरकार की कुछ प्रमुख योजनाएं हैं, जिनका उद्देश्य संवहनीय खपत और उत्पादन हासिल करना तथा प्राकृतिक संसाधनों के कुशल उपयोग का प्रबंधन करना है। #2030 के भारत के संवहनीय उपभोग और उत्पादन का उद्देश्य कम साधनों से अधिक और बेहतर लाभ उठाना, संसाधनों का उपयोग, विनाश और प्रदूषण कम करके आर्थिक गतिविधियों से जन कल्याण के लिए कुल लाभ बढ़ाना और जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना है। इसके साथ ही उपभोक्ता स्तरों पर भोजन की प्रति व्यक्ति बर्बादी को आधा करना और फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान सहित उत्पादन और आपूर्ति श्रृंखलाओं में खाद्य पदार्थों की क्षति को कम करना, स्वीकृत अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के अनुसार रसायनों और उनके कचरे का उनके पूरे जीवन चक्र में पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित प्रबंधन हासिल करना, वायु, जल और मिट्टी में उन्हें छोड़े जाने में उल्लेखनीय कमी करना ताकि मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर उनका विपरीत प्रभाव कम से कम हो। इसके साथ ही 2030 तक रिसाइक्लिंग और दोबारा इस्तेमाल के जरिए कचरे की उत्पत्ति में उल्लेखनीय कमी करना भी इस लक्ष्य के अंतर्गत सुनिश्चित किया गया है।
हुमायूँ का जीवन परिचय (Humayun Ka Jeevan Parichay)भारतीय इतिहास में हुमायूं(Humayun) के नाम से मशहूर मुगल शासक का पूरा नाम नसीरूद्दीन मुहम्मद (Mirza Nasir ud-din Baig Muhammad Khan Humayun) था जिसने भारत में दो चरणों (1530-1540 और 1555-1556) में शासन किया यदपि हुमायूँ के पास साम्राज्य बहुत अधिक साल तक नही रहा फिर भी मुग़ल साम्राज्य की नींव में हुमायूँ का महत्वपूर्ण योगदान है। उसका साम्राज्य अफ़गानिस्तान, पाकिस्तान और उत्तर भारत के हिस्सों तक फैला था। हुमायूँ ने दिल्ली में एक दीनपनाह नामक नगर की स्थापना करवाई |आईन-ए -अकबरी के लेखक ‘अबुल फ़जल’ ने हुमायूँ के बारे में लिखा है :- पुस्तकें हुमायूँ की आध्यात्मिक साथी थी, यहाँ तक युद्ध के समय और यात्राओं में भी पुस्तकें सदैव हुमायूँ के साथ रहती थी व फुर्सत के क्षणों में हुमायूँ पुस्तकों के ज्ञान के सागर में डूब जाते थे | हुमायूं का प्राम्भिक जीवन (Early Life Of Humayun)प्रथम मुग़ल सम्राट बाबर के पुत्र नसीरुद्दीन हुमायूँ का जन्म 6 मार्च 1508 ई को काबुल में हुआ था। बाबर के 4 पुत्र व 1 पुत्री थे जिनमें हुमायूँ सबसे बड़े थे । बाबर ने हुमायूँ को 12 वर्ष की अल्पायु में ही बख़्शा का सूबेदार नियुक्त कर दिया था, जिसने बाबर के नेतृव्त में लगभग सभी अभियानों में हिस्सा लिया था। मुग़ल बादशाह बाबर ने अपना उत्तराधिकारी अपनी मृत्यु के पूर्व ही हुमायूँ को घोषित कर दिया था। मुग़ल वंश संस्थापक बाबर के बारे में पढ़ने के लिये यहॉँ दबाये click here
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Bitcoin In Hindi: आज के डिजिटल युग में जिस रफ़्तार से इंटरनेट ने प्रगति की हैं वे वाकही काबलिय तारीफ हैं इंटरनेट के आने के बाद से हम सभी इंसानो का जीवन बहुत ही आरामदेहक हो गया हैं.
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हमारी पृथ्वी भीषण दबाव में है, इसका भविष्य बड़ा ही दयनीय है, जिसका कारण प्रत्यक्ष रूप से मानव समुदाय है। यदि 2050 तक विश्व की जनसंख्या 9.6 अरब तक पहुंचती है तो हमें हर व्यक्ति की मौजूदा जीवन शैली को सहारा देने के लिए 3 पृथ्वियों की आवश्यकता होगी। हालात ऐसे हैं कि हर वर्ष कुल आहार उत्पादन का लगभग एक-तिहाई अर्थात 10 खरब अमरीकी डॉलर मूल्य का 1.3 अरब टन आहार उपभोक्ताओं और दुकानदारों के कचरों के डिब्बों में सड़ता है अथवा परिवहन और फसल कटाई के खराब तरीकों के कारण बर्बाद हो जाता है। एक अरब से अधिक लोगों को ताजा पानी सुलभ नहीं हो पाता है। दुनिया में 3% से भी कम पानी ताजा तथा पीने लायक है और उसमें से 2.5% अंटार्कटिक, आर्कटिक और ग्लेशियर्स में जमा हुआ है। इस प्रकार सभी पारिस्थितिकी तथा ताजे पानी की जरूरतों के लिए हमें सिर्फ 0.5% का ही सहारा है। इसके साथ ही कारखानों के उड़ते धुएँ, लगातार कटते पेड़, नदियों और महासागरों का दूषित होता जल, रोजमर्रा की जिंदगी में उपयोग किया जाने वाला प्लास्टिक, रोज का बर्बाद होता अनाज और ऐसे ही कई विषय प्रकृति को सता रहे हैं जो बेहद गंभीर हैं। संवहनीय उपभोग और उत्पादन का आशय संसाधनों और ऊर्जा के कुशल प्रयोग को प्रोत्साहन देना, टिकाऊ बुनियादी सुविधाएं प्रदान करना, सबके लिए बुनियादी सेवाएं, प्रदूषण रहित और उत्कृष्ट नौकरियां तथा अधिक गुणवत्तापूर्ण जीवन की सुलभता प्रदान करना है। इसके फलस्वरूप विकास योजनाओं को साकार करने में सहायता मिलती है, भविष्य की आर्थिक, पर्यावरणीय और सामाजिक लागत कम होती है, आर्थिक स्पर्धा क्षमता मजबूत होती है और गरीबी में कमी आती है। सतत् विकास तभी हासिल किया जा सकता है, जब हम न सिर्फ अपनी अर्थव्यवस्थाओं में वृद्धि करें, बल्कि उस प्रक्रिया में बर्बादी को भी कम से कम करें। राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति और राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा निधि सरकार की कुछ प्रमुख योजनाएं हैं, जिनका उद्देश्य संवहनीय खपत और उत्पादन हासिल करना तथा प्राकृतिक संसाधनों के कुशल उपयोग का प्रबंधन करना है। #2030 के भारत के संवहनीय उपभोग और उत्पादन का उद्देश्य कम साधनों से अधिक और बेहतर लाभ उठाना, संसाधनों का उपयोग, विनाश और प्रदूषण कम करके आर्थिक गतिविधियों से जन कल्याण के लिए कुल लाभ बढ़ाना और जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना है। इसके साथ ही उपभोक्ता स्तरों पर भोजन की प्रति व्यक्ति बर्बादी को आधा करना और फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान सहित उत्पादन और आपूर्ति श्रृंखलाओं में खाद्य पदार्थों की क्षति को कम करना, स्वीकृत अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के अनुसार रसायनों और उनके कचरे का उनके पूरे जीवन चक्र में पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित प्रबंधन हासिल करना, वायु, जल और मिट्टी में उन्हें छोड़े जाने में उल्लेखनीय कमी करना ताकि मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर उनका विपरीत प्रभाव कम से कम हो। इसके साथ ही 2030 तक रिसाइक्लिंग और दोबारा इस्तेमाल के जरिए कचरे की उत्पत्ति में उल्लेखनीय कमी करना भी इस लक्ष्य के अंतर्गत सुनिश्चित किया गया है।